Skip to main content

Posts

Featured

मीणा * ब्याडवाल साम्राज्य....

*ब्याड़वाल साम्राज्य / BYADWAAL DYNASTY of Matsyapradesh" :* ब्याड़वाल राज्य मूलवासी भारत का प्राचीनतम सुशासित राज्य था, जिसका उदय 2500 इसा पुर्व मत्स्यप्रदेश राजस्थान में हुआ था। ऋग्वेद में भी मीना मत्स्य राज्य का उल्लेख है। राज्य की कुलदेवी बांकी माता का मंदिर आज भी राजस्थान के जयपुर जिले में स्थित है। मध्यकालीन युग में अकबर ने पुरे उत्तर भारत में अपना राज्य का सिक्का जमा लिया था, सिवाय नेहड़ा के। अकबर नेहड़ा पर भी हुकूमत चाहता था, जिसके लिए आक्रमण की तैयारी भी शुरू करदी थी। हालांकि अकबर ने नेहड़ा के राजा महाराव बाधा सिंह मीना को अपने शासन के अंतर्गत राज्य चलाने की बात कही थी, और राजकुमारी शाशिवादिनी मीणा से विवाह का प्रस्ताव रखा था। परन्तु ब्याड़वाल साम्राज्य के महाराजा बड़ासिंह मीणा एक स्वाभिमानी बहादुर योद्धा थे। वे अपना स्वतंत्र राज्य चाहते थे। मीनाओ ने मुगलों का विवाह प्रस्ताव ठुकरा दिया। बाधाजी ब्याड़वाल ने अकबर से युद्ध करना ठीक समझा। सोलहवीं शताब्दी में (राजस्थान) में केवल दो ही ऐसे मुख्य महाराजा थे जिन्होंने मुगलों की अधीनता कभी स्वीकार नहीं की थी। एक नेहड़ा विराट न

Latest posts

महाराष्ट्र राज्य से राजस्थान तक: महाराष्ट्र

नई का नाथ, लवाण और मीणा लडाकुओं की भुमिगत गढी

मीणा समाज" के महान बाहुबली,वीर योद्धा, "हिदा मीणा"

बारवाल/गोठवाल मीणा माइक्रो हिस्ट्री

महाराष्ट्र महाराष्ट्र परदेशी राजपूत (राजस्थान के मीना (मीणा) ) महाराष्ट्र में भी परदेशी,राजपूत, नाम से राजस्थान से करीब 400 साल पहले 1600-1700 ई० के बीच राजा मानसिंह, महासिंह, भावसिंह और जयसिंह से साथ सेनिको के रूप में दक्षिण के खानदेश, अहमद नगर, बीजापुर, और गोलकुंडा विजय करने गए जयपुर के राजाओ को वहा की सुबेदारी मिलने पर लम्बे समय रहने के गए सेनिक व सहयोगी वही बस गए जय सिंह के देहांत के बाद मुग़ल सूबेदारों ने आर्थिक संकट के कारन सेना कम कर दी उन सेनिको को शिवाजी मराठा ने अपनी सेना में भर्ती कर लिए वो ही मीणा लोग परदेशी राजपूत है | महाराष्ट्र में बसे परदेशी राजपूत (मीना) वहां आपस में कावच्या, भातरया,और सपाटया नाम से एक दुसरे को संबोधित करते है | संयोगवश यह नाम राजस्थान में भी प्रचलित है | जब यहाँ के मीना महाराष्ट्र में गए तब आज का पचवारा,नागरचाल, खैराड,तलेटी, बवान्नी, बयालिसी, के क्षेत्र को कवाच्या कहते थे इसलिए महाराष्ट्र में कवाच्या शब्द का प्रयोग हुवा | मेवात (अलवर-भरतपुर), डूंगरवाड, काठेड (नरौली बैर भरतपुर),जगरोटी (हिंडौन करोली), आंतरी,नेहडा (अलवर), डांग (करोली धोलपुर ) इस क्षेत्र को 350-400 वर्ष पूर्व भातर प्रदेश कहते थे जिसकी राजधानी माचाड़ी थी राजस्थान के भातर प्रदेश निकले मीना माहाराष्ट्र में भातरया, बहदुरिया (करोली की प्राचीन राजधानी बहादुरपुर थी ), बहतारिया, कहलाते है | सपाट (सपाड) प्रदेश से गए हुए राजस्थान के मीना लोगो को मध्य प्रदेश व महाराष्ट्र में सापडया (सपाट्या) कहते है | खंडार तहसील का क्षेत्र,श्योपुर का क्षेत्र, चम्बल, और पार्वती नदी के बीच का क्षेत्र और समस्त हाड़ोती(कोटा,बारां,झालावाड) सापडया क्षेत्र कहलाता था | ये लोग महाराष्ट्र के 15 जिलों की 35 तहसीलों के लगभग 325 गाँवो में रहते है | हम इनका इतिहास ढूंढ रहे है कुछ दस्तावेज भी मिल रहे ...राम सिंह नोरावत जी भी 1949 में वहा गए लोगो से मिले जिसका विवरण अपनी डायरी में लिखा और उस समय की मीणा वीर पत्रिका में छपवाया ओरंगाबाद में मीणा खोखड़ सरदार रामो जी खोखड़ के युध्द में शहीद होने पर उनके नाम से गाँव बसा हुवा है जो औरंगाबाद की एक कोलोनी बन चूका .|.खंडिप गंगापुर के उदय सिंह लकवाल वैजापुर /बीजापुर के युद्ध में वीरगति पाई थी जागा उनके परिवार का महाराष्ट्र से संवत 1730 में आना बताते है जिनको उस गाँव में आज भी मराठा थोक कहते है | कुरहा (अमरावती,बरार ) महाराष्ट्र में एक प्राचीन पपलाज माता जी का बहुत बड़ा मंदिर है पास ही 4 किलोमीटर दूर तिउसा गाँव में एक प्रसिद्ध ताजी गोत्र का मीना परिवार के लोग रहते है जिसमे नारायण सिंह ताजी ख्याति प्राप्त रहे है उनके वन्सजो का निकास भगवतगढ सवाई माधोपुर से होना बताते है करीब 300 साल पूर्व यहाँ से ले जाकर कुरहा में माता जी की स्थापना की गई है नारायण सिंह ताजी की शादी भी करीब 100 साल पहले जयपुर के किसी बड़दावत गोत्री मीणा के यहाँ हुई थी | विट्टल सिंह जी डाडरवाल और प्रताप सिंह जी पैडवाल अपनी वन्सवाली जानने डिगो लालसोट के जागाओ के पास 50 साल पहले आये थे | हम अपना वजूद भूले हुई समाज के लोगो को अपना वजूद जानने में सहयोग कर रहे है | हम 2004 से निरंतर उनके संपर्क में है | 6-2- 2013 व फ़रवरी 7-9 मार्च 2014 को हम महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले की गंगापुर तहसील के कुछ गाँवो में भी जाकर आये है पुराने लोगो का पहनावा,भाषा रीतिरिवाज सब अपने जैसे ही है उनको अपनी मूल भूमि से जोड़ने के लिए सभी का सहयोग अपेक्षित है | सभी के प्रयास से राजस्थान में महाराष्ट्र से अब तक 18 शादिया लालसोट, गंगापुर, निवाई, उनियारा, नैनवा, कोटा, बोंली, मालपुरा, जयपुर में हो चुकी है | किसी समय प्राचीन राजस्थान के अधिकांश हिस्से पर मीना राजाओ का अधिकार था आमेर उनमे प्राचीन था जो मं गणों का संघ था कच्छावा राजपूत नरवर प्रदेश मध्यदेश से जाकर आमेर धोखे से मिनाओ से छिना काफी लम्बे समय तक मीना संघर्ष करते रहे आखिर भारमल कछावा के अकबर की अधीनता स्वीकार करने और वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करने के बाद उसकी शक्ति बढ़ गई थी तथा मीना पूर्णरूपेण अपनी शक्ति खो चुके थे फिर भी निरंतर संघर्ष जारी रखे हुए थे परन्तु इस मनोमालिन्य को पूरी तरह से मिटने के लिए भारमल ने कूटनीति का प्रयोग किया तथा मीनों को जागीरे ,राज्य का पुलिस सुरक्षा प्रबंध ,खजांची,सेना के कई प्रमिख ओदे,तोपखाना आदि की जिम्मेदारी दी तह कई किलों नाहरगढ़,जैगढ़ की किलेदारी भी दी 21 जागीरे और प्रमुख दरबारी सरदारों में भी स्थान दिया था उस समय जागीरदार राजा को सेनिक सहायता दिया करते थे यहाँ यह कहा जा सकता है की इस बहादुर और लड़ाकू कौम मीना के सेनिक दस्ते भी राजा मानसिंह की सेना में थे | क्योकि मुग़ल दरबार से आदेश मिलने पर राजा मानसिंह ने एक विशेष सेनिक दल भर्ती किया था जिसमे मीना और मेवाती थे | .6 जनवरी 1601 ई० में असीरगढ़ पर पूर्ण विजय मिलने पर अकबर ने दानियाल को दक्षिण का जिसके अंतर गत खानदेश,बरार,और अहमद नगर का कुछ भाग था जिसकी राजधानी दोलताबाद थी दिया | दानियाल की मृत्यु 1604 के बाद मानसिंह 1609 में जहागीर के समय प्रधान सेनापति शहजादा परवेज के सहयोग में गए 5 साल की सेवा के बाद 6 जुलाई 1614 को एलिचपुर में उनका देहांत हो गया | उनके बाद गडा और दौसा के जागीरदार कुवर महा सिंह को भेजा गया 20 मई 1617 में बरार के बालापुर में इनका भी देहांत हो गया यहाँ यह बताना भी उचित होगा की जब महासिंह को दौसा की जागीर मिली तो उसकी सेना में दौसा क्षेत्र के लोग अवश्य होंगे खोकड़ सरदार रामो जी महासिग की सेना में प्रमुख ओहदेदार रहे होंगे संभव यह है की खोखड सरदार के नेत्रित्व में हजारों मीना और मेवाती सेनिक दक्षिण में महासिंह के साथ गए बरार के बालापुर में जहाँ महासिंह जी का देहांत हुवा वह स्थान अकोला से 50 किलोमीटर और अमरावती से 100 किलोमीटर ही है जहा कई गाँवो में मीना परदेशी राजपूत के नाम से आज भी बसे हुए है साथ ही औरंगाबाद(प्राचीन खिड़की) में खोखडपूरा(अब एक कोलोनी) और भाव सिंह पूरा गाँव भी है जो संभवत मीना खोखड सरदार और राजा मान सिंह के पुत्र भाव सिंह जिन्हें महा सिंह के बाद दक्षिण में नियुक्ति मिली का देहांत भी बालापुर में सन 1622 ई० में हुवा था की यादगार में बसाये गए होंगे | महासिंह और भाव सिंह के समय भी मीना 10 से 1000 तक के मनसब थे तोपखाना हजुरी तो पूरी तरह मिनाओ के ही अधीन था | फिर अगला दस्ता जयसिंह के साथ गया लगभग 1656 ई० में | जो लोग 1609 में गए थे वो वापिस घर नहीं आये बाद में गए वो भी उनसे मिल गए | दक्षिण में गए मिनाओ ने कई विजय प्राप्त की और अदम्य साहस का परिचय दिया | बाद में जयसिंह के लोटने व मुगलों की आर्थिक स्थिति कमजोर होने पर इन सेनिको को निकला गया जिन्हें शिवाजी ने अपनी सेना में भर्ती कर लिए शिवाजी ने उन्हें पद और ओहदे दिए जमीने दी | मिनाओ की गुर्रिला युद्ध निति आगे जाकर शिवाजी महाराज की प्रमुख युद्ध रणनीति बन गई | मराठे और मीना साथ मिलकर मुगलों से लडे | भाईचारा बढ़ा और ये वाही के होकर रह गए |

. *मीना दर्शन* *विठ्ठलसिंग काकरवाल* *मीणा इतिहास एक परिचय* मीणा जाति मूल रूप से भारत के राजस्थान राज्य में निवास करने वाली एक जऩजाति है। मीणा जाति भारतवर्ष की प्राचीनतम पांच सबसे बडी जनजातियों में से एक मानी जाती है । *वेद पुराणों के अनुसार मीणा जाति मत्स्य(मीन) भगवान की वंशज है। पुराणों के अनुसार चैत्र शुक्ला तृतीया को कृतमाला नदी के जल से मत्स्य भगवान प्रकट हुए थे। इस दिन को मीणा समाज जहां एक ओर मत्स्य जयन्ती के रूप में मनाया जाता है वहीं दूसरी ओर इसी दिन संम्पूर्ण राजस्थान में गणगौर का त्योहार बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है।* मीणा जाति का गणचिह्न मीन (मछली) था। मछली को संस्कृत में मत्स्य कहा जाता है। प्राचीनकाल में मीणा जाति के राजाओं के हाथ में वज्र तथा ध्वजाओं में मत्स्य का चिह्न अंकित होता था, इसी कारण से प्राचीनकाल में मीणा जाति को मत्स्य माना गया। *प्राचीन ग्रंथों में मत्स्य जनपद का स्पष्ट उल्लेख है जिसकी राजधानी विराट नगर थी, जो अब जयपुर वैराठ है।* इस मस्त्य जनपद में अलवर, भरतपुर एवं जयपुर के आस-पास का क्षेत्र शामिल था। आज भी मीणा लोग इसी क्षेत्र में बहुत अधिक संख्या में रहते हैं। *मीणा जाति के भाटों(जागा) के अनुसार मीणा जाति में 12 पाल, 32 तड़ एवं 5248 गौत्र हैं।* *लालाराम मीणा न्यायधीश के अनुसार मध्य प्रदेश के भी निम्न 23 जिलो मे 35 से 40 लाख मीणा मुख्य रुप से निवास करते हैं :--मंदसौर, नीमच, श्योपुर, शिवपुरी, मुरैना, गुना, देवास, राजगढ, सीहोर, होशंगाबद, भोपाल, रायसेन, हरदा, इन्दौर, ग्वालीयर, विदिशा, हरदा, खंडवा, खरगोन, धार, राजगढ़, रतलाम, उज्जैन आदि मे मीणा जाति मुख्य रुप से निवास करती है जिन्हे मीना, मीणा, मैना, रावत, देशवाली, मारन आदि नामो से जाना जाता हे!* मूलतः *मीना एक सत्तारूढ़ [जाति] थे, और मत्स्य, यानी, राजस्थान या मत्स्य संघ के शासक थे,* लेकिन उनका पतन स्य्न्थिअन् साथ आत्मघात से शुरू हुआ और पूरा जब ब्रिटिश सरकार ने उन्हें राजपूतों के साथ मिलकर "आपराधिक जाति" में डाल दिया था। यह कार्रवाई, राजस्थान में राजपूत राज्य के साथ उनके गठबंधन के समर्थन में लिया गया निर्णय थी | मीणा राजा आम्बेर (जयपुर) सहित राजस्थान के प्रमुख भागों के प्रारंभिक शासक थे। पुस्तक 'संस्कृति और भारतीय जातियों की एकता "RS Mann द्वारा में कहा गया है कि मीना, राजपूतों के समान एक क्षत्रिय जाति के रूप में मानी जाती हे परंतु इतिहास में उल्लेख बहुत कम किया गया हैै। प्राचीन समय में राजस्थान मे मीना वंश के राजाओ का शासन था। मीणा राज्य मछली (राज्य) कहा जाता था। संस्कृत में मत्स्य राज्य का ऋग्वेद में उल्लेख किया गया था. बाद में भील और मीना, विदेशी लोगों से जो कि सिंध्, हेप्थलिते या अन्य मध्य एशियाई गुटों के साथ आये थे, से मिश्रित हुए। मीना मुख्य रूप से मीन भगवान और (शिव) की पुजा करते थे/हैं। *मीनाओ मे कई अन्य हिंदू जातिओं की तुलना में महिलाओं के लिए बेहतर अधिकार रहे हैं। विधवाओं और तलाकशुदा का पुनर्विवाह एक आम बात है* और इसेअच्छी तरह से अपने समाज में स्वीकार कर लिया है। इस तरह के अभ्यास वैदिक सभ्यता का हिस्सा हैं। आक्रमण के वर्षों के दौरान, और १८६८ के भयंकर अकाल में, तबाह के तनाव के तहत कै समुह बने। एक परिणाम के रूप मे भूखे परिवारों को जाति और ईमानदारी का संदेह का परित्याग करने के लिए पशु चोरी और उन्हें खाने के लिए मजबूर होना पडा।. *विषय सूची* 1 वर्ग 2 मीणा जाति के प्रमुख राज्य निम्नलिखित थे 3 मीणा राजाओं द्वारा निर्मित प्रमुख किले 4 मीणा राजाओं द्वारा निर्मित प्रमुख बाबड़ियां 5 मीणा राजाओं द्वारा निर्मित प्रमुख मंदिर : *१-मीणा जाति प्रमुख रूप से निम्न वर्गों में बंटी हुई है..* *:-जमींदार या पुरानावासी मीणा :-* जमींदार या पुरानावासी मीणा वे हैं जो प्रायः खेती एवं पशुपालन का कार्य बर्षों से करते आ रहे हैं। ये लोग राजस्थान के सवाईमाधोपुर, करौली,दौसा व जयपुर जिले में सर्वाधिक हैं| *-:चौकीदार या नयाबासी मीणा :-* चौकीदार या नयाबासी मीणा वे मीणा हैं जो अपनी स्वछंद प्रकृति के कारण चौकीदारी का कार्य करते थे। इनके पास जमींने नहीं थीं, इस कारण जहां इच्छा हुई वहीं बस गए। उक्त कारणों से इन्हें नयाबासी भी कहा जाता है। ये लोग सीकर, झुंझुनू, एवं जयपुर जिले में सर्वाधिक संख्या में हैं। *-:प्रतिहार या पडिहार मीणा :-* इस वर्ग के मीणा टोंक, भीलवाड़ा, तथा बूंदी जिले में बहुतायत में पाये जाते हैं। प्रतिहार का शाब्दिक अर्थ उलट का प्रहार करना होता है। ये लोग छापामार युद्ध कौशल में चतुर थे इसलिये प्रतिहार कहलाये। *-:रावत मीणा :-* रावत मीणा अजमेर, मारवाड़ में निवास करते हैं। रावत एक उपाधी थी जो बहादुरी के लिये दी जाती थी! *-:भील मीणा :-* ये लोग सिरोही, उदयपुर, बांसवाड़ा, डूंगरपुर एवं चित्तोड़गढ़ जिले में प्रमुख रूप से निवास करते हैं। *२-मीणा जाति के प्रमुख राज्य :-* खोहगंग का चांदा राजवंश, मांच का सीहरा राजवंश, गैटोर तथा झोटवाड़ा के नाढला राजवंश, आमेर का सूसावत राजवंश, नायला का राव बखो [beeko] देवड़वाल (द॓रवाल) राजवंश, नहाण का गोमलाडू राजवंश, रणथम्भौर का टाटू राजवंश, नाढ़ला का राजवंश, बूंदी का उषारा एवम् मोटिश राजवंश, मेवाड़ का मीणा राजवंश, माथासुला ओर नरेठका ब्याड्वाल झान्कड़ी अंगारी (थानागाजी) का सौगन मीना राजवंश! *प्रचीनकाल में मीणा जाति का राज्य राजस्थान में चारों ओर फ़ैला हुआ था!* *३-मीणा राजाओं द्वारा निर्मित प्रमुख किले :-* तारागढ़ का किला बूंदी, आमागढ़ का किला, हथरोई का किला, खोह का किला, जमवारामगढ़ का किला, *४-मीणा राजाओं द्वारा निर्मित प्रमुख बाबड़ियां:-* भुली बाबड़ी ग्राम सरजोली, मीन भग्वान राणी जी की बावड़ी बूंदी बावदी, सरिस्का, अल्वर पन्ना मीणा की बाबड़ी, आमेर खोहगंग की बाबड़ी,जयपुर मीणा राजा चन्द की आभानेरी चाँद बावड़ी *५-मीणा राजाओं द्वारा निर्मित प्रमुख मंदिर :-* दांत माता का मंदिर, जमवारामगढ़- सीहरा मीणाओं की कुल देवी, शिव मंदिर, नई का नाथ, बांसखो,जयपुर बांकी माता का मंदिर, रायसर,जयपुर-ब्याडवाल मीणाओं की कुलदेवी, बाई का मंदिर, बड़ी चौपड़, जयपुर ज्वालादेवी का मंदिर, जोबनेर, जयपुर टोडा महादेव का मंदिर, टोडामीणा, जमवारामगढ़, जयपुर सेवड माता का मंदिर, मीन भगवान का मंदिर, मलारना चौड़,सवाई माधोपुर (राजस्थान) मीन भगवान का मंदिर, चौथ का बरवाड़ा, सवाई माधोपुर (राजस्थान) मीन भगवान का मंदिर, खुर्रा, लालसोट, दौसा (राजस्थान) *इतिहास प्रसिद्द पूरात्वविद स्पेन निवासी फादर हेरास ने 1940- 1957 तक सिन्धु सभ्यता पर खोज व शोद्द कार्य किया 1957 में उनके शोद्द पत्र मोहन जोदड़ो के लोग व भूमि शोद्द पत्र संख्या-4 में लिखा है* मोहन जोदड़ो सभ्यता के समय यह प्रदेश चार भागो में विभक्त था जिनमे एक प्रदेश मीनाद था जिसे संस्कृत साहित्य में मत्स्य नाम दिया गया और साथ ही यह भी लिखा की *मीना (मीणा) आर्यों और द्रविड़ो से पूर्व बसा मूल आदिवासी समुदाय था जो ऋग्वेद काल के मत्स्यो के पूर्वज है जिसका गण चिह्न मछली (मीन) था* । इस *मीना समुदाय का प्राचीनतम उल्लेख ऋग्वेद में किया गया है वहा लिखा है ये लोग बड़े वीर पराक्रमी और शूरवीर है* पर आर्य राजा सुदास के शत्रु है इसका ही उल्लेख डिस्ट्रिक गजेटियर बूंदी 1964 के पृष्ट -29 पर भी किया गया है; *हरमनगाइस ने अपनी पुस्तक द आर्ट एण्ड आर्चिटेक्चर ऑफ़ बीकानेर के पृष्ट -98 पर मीणा समुदाय की प्राचीनता का उल्लेख* करते हुए लिखा है की मीना आदिवासी लोग मत्स्य लोगो के वंसज है जो आर्यों की और से लडे राजा सुदास से पराजित हुए और महाभारत के युद्द में मत्स्य जनपद के शासक के रूप में शामिल हुई | महाभारत युद्द में हुई क्षति से ये बिखर गए छोटे छोटे अनेक राज्य अस्तित्व में आ गए जिनमे इनका पूर्व का कर्द राज्य गढ़ मोरा महाभारत काल में जिसका शासक ताम्र ध्वज थे *मोरी वंश प्रसिद्द हुवा जिसका राजस्थान में अंतिम शासक चित्तोड़ के मान मोर हुए* जिसे बाप्पा रावल ने मारकर गुहिलोतो का राज्य स्थापित किया जो आगे जाकर सिसोदिया कहलाया | मोरी (मोर्य) साम्राज्य के अंत और गुप्त सामराज्य के समय अनेक छोटे छोटे राज्य हो गए मेर, मेव और मीना कबीलाई मेवासो के रूप में अस्तित्व में आये .उत्तर से आने वाली आक्रमण करी जातियों ने इनको काफी क्षति पहुचाई .शेष बचे गणराज्यो को *समुद्रगुप्त ने कर्द राज्य बनाया उस समय मेरवाडा में मेर मेवाड़ में मेव और ढूढाड में मीना काबिज थे* हर्ष वर्धन के समय उसके अधीन रहे | हर्ष वर्धन के अंत के बाद पुन जोर पकड़ा | कई राज्य बने कमजोर थे उन्होंने ताकत अर्जित करी | *वरदराज विष्णु को हीदा मीणा लाया था दक्षिण से आमेर रोड पर परसराम द्वारा के पिछवाड़े की डूंगरी पर विराजमान वरदराज विष्णु की एतिहासिक मूर्ति को साहसी सैनिक हीदा मीणा दक्षिण के कांचीपुरम से लाया था।* मूर्ति लाने पर मीणा सरदार हीदा के सम्मान में सवाई जयसिंह ने रामगंज चौपड़ से सूरजपोल बाजार के परकोटे में एक छोटी मोरी का नाम हीदा की मोरी रखा। उस मोरी को तोड़ अब चौड़ा मार्ग बना दिया लेकिन लोगों के बीच यह जगह हीदा की मोरी के नाम से मशहूर है। देवर्षि श्री कृष्णभट्ट ने ईश्वर विलास महाकाव्य में लिखा है, कि *कलयुग के अंतिम अश्वमेध यज्ञ* केलिए जयपुर आए वेदज्ञाता रामचन्द्र द्रविड़, सोमयज्ञ प्रमुखा व्यास शर्मा, मैसूर के हरिकृष्ण शर्मा, यज्ञकर व गुणकर आदि विद्वानों ने महाराजा को सलाह दी थी कि कांचीपुरम में आदिकालीन विरदराज विष्णु की मूर्ति के बिना यज्ञ नहीं हो सकता हैं। यह भी कहा गया कि द्वापर में धर्मराज युधिष्ठर इन्हीं विरदराज की पूजा करते था। जयसिंह ने कांचीपुरम के राजा से इस मूर्ति को मांगा लेकिन उन्होंने मना कर दिया। तब जयसिंह ने साहसी हीदा को कांचीपुरम से मूर्ति जयपुर लाने का काम सौंपा। हीदा ने कांचीपुरम में मंदिर के सेवक माधवन को विश्वास में लेकर मूर्ति लाने की योजना बना ली। कांचीपुरम में विरद विष्णु की रथयात्रा निकली तब हीदा ने सैनिकों के साथ यात्रा पर हमला बोला और विष्णु की मूर्ति जयपुर ले आया। इसके साथ आया माधवन बाद में माधवदास के नाम से मंदिर का महंत बना। अष्टधातु की बनी सवा फीट ऊंची विष्णु की मूर्ति के बाहर गण्शोमध्ययुगीन इतिहास प्राचीन समय मे मीणा राजा आलन सिंह ने, एक असहाय राजपूत माँ और उसके बच्चे को उसके दा बच्चे, ढोलाराय को दिल्ली भेजा, मीणा राज्य का प्रतिनिधित करने के लिए। राजपूत ने इस् एहसान के लिए आभार मे *राजपूत सणयन्त्रकारिओ ने दीवाली पर पुरखो को पानी देते समय निहत्थे मीनाओ पर हमला करके मीनाओ की लाशे बिछा दि, उस समय मीना पित्र तर्पन रस्में कर रहे थे।* मीनाओ को उस् समय निहत्था होना होता था। जलाशयों को"जो मीनाऔ के मृत शरीर के साथ भर गये। ] और *इस प्रकार कछवाहा राजपूतों ने खोगओन्ग पर विजय प्राप्त की थी, सबसे कायर हर्कत और राजस्थान के इतिहास में शर्मनाक।* एम्बर के कछवाहा राजपूत शासक भारमल हमेशा नह्न मीना राज्य पर हमला करता था, लेकिन बहादुर बड़ा मीणा के खिलाफ सफल नहीं हो सका। अकबर ने राव बड़ा मीना को कहा था,अपनी बेटी कि शादी उससे करने के लिए। बाद में भारमल ने अपनी बेटी जोधा की शादी अकबर से कर दि। तब अकबर और भारमल की संयुक्त सेना ने बड़ा हमला किया और मीना राज्य को नस्त कर दिया। मीनाओ का खजाना अकबर और भारमल के बीच साझा किया गया था। भारमल ने एम्बर के पास जयगढ़ किले में खजाना रखा । *-:कुछ अन्य महत्वपूर्ण तथ्य:-* कर्नल जेम्स- टॉड के अनुसार कुम्भलमेर से अजमेर तक की पर्वतीय श्रृंखला के अरावली अंश परिक्षेत्र को मेरवाड़ा कहते है । मेर+ वाड़ा अर्थात मेरों का रहने का स्थान । कतिपय इतिहासकारों की राय है कि " मेर " शब्द से मेरवाड़ा बना है । यहां यह भी सवाल खड़ा होता है कि क्या मेर ही रावत है । कई इतिहासकारो का कहना है किसी समय यहां विभिन्न समुदायो के समीकरण से बनी 'रावत' समुदाय का बाहुल्य रहा है जो आज भी है । *रावत एक उपाधी थी जो बहादुर लोगो को दी जाती थी!* कहा यह भी जाता है कि यह समुदाय परिस्थितियों और समय के थपेड़ों से संघर्ष करती कतिपय झुंझारू समुदायों से बना एक समीकरण है । *सुरेन्द्र अंचल अजमेर का मानना है कि रावत ही मीणा है या यो कह लें कि मीणाओ मे से ही रावत वर्ग है । रावत और राजपूतो में परस्पर विवाह सम्बन्ध के उदाहरण मुश्किल से हि मिल पाए । जबकि रावतों और मीणाओ के विवाह होने के अनेक उदाहरण आज भी है ।* श्री प्रकाश चन्द्र मेहता ने अपनी पुस्तक " आदिवासी संस्कृति व प्रथाएं के पृष्ठ 201 पर लिखा है कि मेवात मे मेव मीणा व मेरवाड़ा में मेर मीणाओं का वर्चस्व था। महाभारत के काल का मत्स्य संघ की प्रशासनिक व्यवस्था लौकतान्त्रिक थी जो मौर्यकाल में छिन्न- भिन्न हो गयी और इनके छोटे-छोटे गण ही आटविक (मेवासा ) राज्य बन गये । चन्द्रगुप्त मोर्य के पिता इनमे से ही थे । समुद्रगुप्त की इलाहाबाद की प्रशस्ति मे आ...टविक ( मेवासे ) को विजित करने का उल्लेख मिलता है राजस्थान व गुजरात के आटविक राज्य मीना और भीलो के ही थे इस प्रकार वर्तमान ढूंढाड़ प्रदेश के मीना राज्य इसी प्रकार के विकसित आटविक राज्य थे । वर्तमान हनुमानगढ़ के सुनाम कस्बे में मीनाओं के आबाद होने का उल्लेख आया है कि *सुल्तान मोहम्मद तुगलक ने सुनाम व समाना के विद्रोही जाट व मीनाओ के संगठन ' मण्डल ' को नष्ट करके मुखियाओ को दिल्ली ले जाकर मुसलमान बना दिया* ( E.H.I, इलियट भाग- 3, पार्ट- 1 पेज 245 ) इसी पुस्तक में अबोहर में मीनाओ के होने का उल्लेख है (पे 275 बही) इससे स्पष्ट है कि मीना प्राचीनकाल से सरस्वती के अपत्यकाओ में गंगा नगर हनुमानगढ़ एवं अबोहर- फाजिल्का मे आबाद थे । रावत एक उपाधि थी जो महान वीर योध्दाओ को मिलती थी जो सम्मान सूचक मानी जाती थी मुस्लिम आक्रमणो के समय इनमे से काफी को मुस्लिम बना...या गया अतः मेर मेरात मेहर मुसमानो मे भी है ॥ *17 जनवरी 1917 में मेरात और रावत सरदारो की राजगढ़ ( अजमेर ) में महाराजा उम्मेद सिह शाहपूरा भीलवाड़ा और श्री गोपाल सिह खरवा की सभा मेँ सभी लोगो ने मेर मेरात मेहर की जगह रावत नाम धारण किया ।* इसके प्रमाण के रूप में 1891 से 1921 तक के जनसंख्या आकड़े देखे जा सकते है 31 वर्षो मे मेरो की संख्या में 72% की कमी आई है वही रावतो की संख्या में 72% की बढोत्तर हुई है । गिरावट का कारण मेरो का रावत नाम धारण कर लेना है । सिन्धुघाटी के प्राचीनतम निवासी मीणाओ का अपनी शाखा मेर, महर के निकट सम्बन्ध पर प्रकाश डालते हुए कहा जा सकता है कि -- *सौराष्ट्र (गुजरात ) के पश्चिमी काठियावाड़ के जेठवा राजवंश का राजचिन्ह मछली के तौर पर अनेक पूजा स्थल " भूमिलिका " पर आज भी देखा जा सकता है इतिहासकार जेठवा लोगो को मेर( महर, रावत) समुदाय का माना जाता है* जेठवा मेरों की एक राजवंशीय शाखा थी जिसके हाथ में राजसत्ता होती थी *(I.A 20 1886 पेज नः 361) कर्नल टॉड ने मेरों को मीना समुदाय का एक भाग माना है (AAR 1830 VOL- 1) आज भी पोरबन्दर काठियावाड़ के महर समाज के लोग उक्त प्राचीन राजवंश के वंशज मानते है अतः हो ना हो गुजरात का महर समाज भी मीणा समाज का ही हिस्सा है ।* *फादर हैरास एवं सेठना ने सुमेरियन शहरों में सभ्यता का प्रका फैलाने वाले सैन्धव प्रदेश के मीना लोगो को मानते है ।* इस प्राचीन आदिम निवासियों की सामुद्रिक दक्षता देखकर मछलि ध्वजधारी लोगों को *नवांगुतक द्रविड़ो ने मीना या मीन नाम दिया* मीलनू नाम से मेलुहा का समीकरण उचित जान पड़ता है मि *स्टीफन ने गुजरात के कच्छ के मालिया को मीनाओ से सम्बन्धीत बताया है दूसरी ओर गुजरात के महर भी वहां से सम्बन्ध जोड़ते है ।* कुछ महर समाज के लोग अपने आपको हिमालय का मूल मानते है उसका सम्बन्ध भी मीनाओ से है हिमाचल में मेन(मीना) लोगो का राज्य था । स्कन्द में शिव को मीनाओ का राजा मीनेश कहा गया है । *हैरास सिन्धुघाटी लिपी को प्रोटो द्रविड़ियन माना है उनके अनुसार भारत का नाम मौहनजोदड़ो के समय सिद था इस सिद देश के चार भाग थे जिनमें एक मीनाद अर्थात मत्स्य देश था । फाद हैरास ने एक मोहर पर मीना जाती का नाम भी खोज निकाला ।* उनके अनुसार मोहनजोदड़ो में राजतंत्र व्यवस्था थी । एक राजा का नाम " मीना " भी मुहर पर फादर हैरास द्वारा पढ़ा गया ( डॉ॰ करमाकर पेज न॰ 6) अतः कहा जा सकता है कि मीना जाति का इतिहास बहुत प्राचीन है इस विशाल समुदाय ने देश के विशाल क्षेत्र पर शासन किया और इससे कई जातियो की उत्पत्ती हुई और इस समुदाय के अनेक टूकड़े हुए जो किसी न किसी नाम से आज भी मौजुद है । आज भी 10-11 हजार मीणा लोग फौज में है *बुदी का उमर गांव पूरे देश मे एक अकेला मीणो का गांव है जिसमें 7000 की जनसंख्या मे से 2500 फौजी है* टोंक बूंन्दी जालौर सिरोही मे से मीणा लोग बड़ी संख्या मे फौज मे है। उमर गांव के लोगो ने प्रथम व द्वीतिय विश्व युध्द लड़कर शहीद हुए थे *शिवगंज के नाथा व राजा राम मीणा को उनकी वीरता पर उस समय का परमवीर चक्र जिसे विक्टोरिया चक्र कहते थे मिला था* जो उनके वंशजो के पास है । *आजादी के समय भारत में तीन मीणा बटालियने थी* पर दूर्भावनावश खत्म कर दी गई थी! *तूंगा (बस्सी) के पास जयपुर नरेश प्रतापसिंह और माधजी सिन्धिया मराठा के बीच 1787 मे जो स्मरणिय युध्द हुआ उसमें प्रमुख भूमिका मीणो की रही जिसमे मराठे इतिहास मे पहली बार जयपुर के राजाओ से प्राजित हुए थे वो भी मीणाओ के कारण* इस युध्द में राव चतुर और पेमाजी की वीरता प्रशंसनीय रही । उन्होने चार हजार मराठो को परास्त कर मीणाओ ने अपना नाम अमर कर दिया । तूँगा के पास अजित खेड़ा पर जयराम का बास के वीरो ने मराठो को हराया इसके बदले जयराम का बास की जमीन व जयपुर खजाने मे पद दिया गया । सम्माननीय वीर इमानदार कर्तव्यनिष्ठ मीणा बंधुवर, आपसे मेरा व्यक्तिगत आग्रह है कि आप समाज हित में जनजाति की लड़ाई व अशिक्षा दूर करने के लिए अभियान के तहत छात्रावासो के निर्माण कार्यो मैं सहयोग अवश्य करें, इस हेतु किसी अन्य बंधुवर का इंतजार नहीं करें, (क्योंकि कोई अन्य व्यक्ति आपसे कहेगा या आपके पास आएगा इसका इंतजार किया तो कोई भी सामाजिक कार्य नहीं हो सकता है) ! अतः आप सहयोग करें एवं अपने बंधुओं से सहयोग कराएं तो ही यह सामाजिक कार्य संभव है ! 🚨आपको ईश्वर ने किसी महान उद्देश्य से मानव जीवन देकर अन्य करोड़ो जीव-जंतुओं से श्रेष्ठ बनाकर यह अपेक्षा की है कि आप अन्य सभी के हितों की रक्षा करेंगे और मानवता अर्थात समाज सेवा को सर्वोपरि स्थान देंगे। राजस्थान के मीणा समाज में कुल मिलाकर 5248 गोत है, उनमें से कुछ गोत / surnames A Auraj औराज Aamroo आमरू B Beflawat बैफ़लावत Bagdi बागड़ी Bagodiya बागोडिया Bagranya बगरान्या Bainada बैनाडा Bakala बाकला Barwal बारवाल Bargoti बड़गोती Basanwal बासनवाल Byadwal ब्याडवाल Bhodna भोदना Bhorawat भौरावत or bhorayat भौरायत Banskhowa बांसखोवा Bhakand भाकंड Bandwal बान्डवाल Bamnawat बामनावत Bankliya बांकलिया Buriya बूरियाल Benade बेनाडे Bhabhla भाभला Bhonda भोन्डा Bohra / bahure बोहरा / बहुरे Balot बालोत Bunas बूनस Buriya बूरिया Banskho बांसखो Beelwal बीलवाल Bail बेल Bundas बूंदस Besar बेसर Bhaskar भास्कर Bhabhrya भाभर्या C cholak छोलक chedwal छेड़वाल chandwal छान्डवाल chanda चांदा chawal छावल chhanwal छानवाल channavat छन्नावत chirawat छिरावत chitach छिताच chhapola छापोला charnawat चर्नावत charawadiya चारावंड्या choriya छोरिया charawat छरावत chandwara चंन्दवारा chandadiya चंदाड्या chaudhari चौधरी chetriya चेत्रीया chorasya चोरस्या chandrawat चंन्द्रावत choolwal चुलवाल chorawat छोरावत chookleda चोकलेडा chungada चुंगडा D dagal डागल dhyawana ध्यावणा dewana देवणा devadwal देवदवाल dovwal डोबवाल domela डुमेला dewanda देवंदा dhanawat धनावत dundya दुन्ध्या dhankariya ढाकर्या dudawat दुडावत didawat दिदावत dedwal डेडवाल dakriya डाकर्या dadarwal डाडरवाल dechalwal डेचरवाल damachya दमाच्या dondaga दोन्डगा duwanya दुवाण्या dugarwal डुगरवाल donawat दोनावत dhaigal डहंगळ dechalwal डेचरवाल dhawaniya धावण्या dhurwal धुरवाल dhakal डाकल damriya दामर्या dussawat दुसावत dheerawat धिरावत dawer डावर F faneta फानेटा farwa फार्वा G gohli गोसली gomladoo गोमलाडू gothwal गोठवाल gunawat घुनावत ghusinga घुसिंगा gahlot गहलोत goliya गोलिया Golwal गोलवाल govli गवली goyali गोयली gorwad गोरवाड ghumariya घुमार्या ghusrawat घुस्रावत goththulगोठल ghodeta घोडटा gorni घोर्णी H hazari हजारी hatwal हटवाल hadchoor हाडचोर J Jundia जून्दिया jaif जैफ jhirval झिरवाल jagarwal जगरवाल jeejarh जिजर्ह joharwal जोहरवाल jharwal झारवाल jhamuhre झामूर्हे jakhiwal जखिवाल jareda जारेडा jorwad जोरवाड jorwal / jarwal जोरवाल / जारवाल jorawat जुरावत jurdiya जुर्डीया junwal / jonwal जुनवाल / जोनवाल jendera जेन्डेरा jalodiya जलोड्या jhajhra झाझरा janera जानेरा K kanwat कांवत kankas कांकस khoda खोड़ा kholwal खोलवाल kotwadya कोटवाड्या kunwaliya कुनवालिया khokaar खोक्कर kahite काहीटे khora खोरा khata खाटा kakroda काकरोडा kawadiya कवाडीया kathumariya कठूमार्या kankarwal काकरवाल kanwatiya कन्वाट्या kantiya कान्तिया kokra कोकरा kotwar कोटवार kotwadiya कोटवाड्या kotwada कोटवाडा kotwal कोटवाल kalot कलोत kumrawat कुमरावत kudaliya कुडालिया kajodiya कजोडीया katrawat कतरावत khorwal खोरवाल khani खाणी khatla खाटला kunjlot कुंजलोत kotawariya कोटवारिया kanriwal कनरीवाल kanetiya कानेटीया kuwal कुवल kiwad किवड kanet कानेत kawaliya कवाल्या khandal खंडल khokhalwar खोकरवार Khaneda खानेडा L lotan लोटण lalsotya लालसोट्या luckwads लुकवाड lukwal लकवाल lodhwal लोदवाल lookhdiya लुखडिया lakhnauta लखनौटा luhar meena लुहार मीणा lakhnawat लखनावत M mandar मंदार myal म्याळ mehar मेहर marmat मरमट machya मच्या motis मोटीस mewal मेवाळ mimrot मिमरोट mandawat मंडावत madhaiya मांधिया manatwal मनतवाल mainawat मैनावत mandal मांडल mandar मंदार marag मारग mothiya मोठ्या mothu मोठू morajhwal मोर्झवाल morjal मोर्झाल marwadiya मारवाड़्या mohsal मोहसल moja मोझा mohnot मोहनोत muradiya मुर्हाड्या mandiya मांड्या N naurawat नौरावत nareda नार्हेडा nandla नांदला naananiya नानानिया neemrot निमरोट naglod नागलोद nimroth निमरोठ naugara नौगरा nakwal नकवाल neemwal निमवाल nathawat नाथावत newla नेवला nai meena नाई मीणा / नाईमण्या neemawat निमावत P pawadi पबड़ी pokhriya पोखरिया perwa पेरवा perwal पेरवाल poonjlot पुंजलोत panwar पंवार parihar परिहार pakar पाकळ pratihar प्रतिहार pyara प्यारा parala पारला purawat पुरावत R rajalwal राजलवाल rankala रांकळा rajarwal राजरवाल Reknot रेकनोत rodiya रोडीया S susawat सुसावत sattawan सत्तावन sawara सवारा singhal सिंघल sirra सिर्हा sonet सोनेत singhalwal सिंघलवाल seeswal सिसवाल sogan सोगण sewariya सेवरिया sapawat सपावत sulaniya सुलाण्या siwal सिवल soorwal सुरवाल simal सिमल sandoora संदुरा seelwar सिलवार shahar सहर saharia सहारीया seenam सिनम Sisodiya शिसोड्या Sastiya साष्टीया T tatu टाटू thanwal थानवाल thahgal थंघल thoorwar थोरवार teelan तिलान tatar तातर tatwara टटवारा tatunya तटाण्या tamri तामरी tazi ताजी U ussara उषारा Z zurawat झुरावत

मीणा गोत के निम्न मीणा ओ की कुलदेवी 1 गोमलाडू मीणा 1 सनतया माता 2 बांकी माता 2 घुणावत मीणा 1 मोरा माता 2 लहकोड माता 3 काकरवाल मीणा 1 अम्बे माता 2 मोरा माता 4 उषारे मीणा 1 हिंगलाज माता 2 बीजासन माता 3 बांकी माता 5 लोदवाल मीणा 1 कैलाई माता 6 चेडवाल मीणा घटवासन माता 7 मेहर मीणा घटवासन माता 8 लकवाल मीणा घटवासन माता 9 आमट मीणा घटवासन माता 10 नकवाल मीणा घटवासन माता 11 बुजेटया मीणा घटवासन माता 12 मचिया मीणा अम्बे माता 13 सुसावत मीणा अम्बे माता 14 छाडवाल मीणा पपलाज माता 15 धणावत मीणा पपलाज माता 16 डूंगर जाल मीणा पपलाज माता 17 जूरावत मीणा पपलाज माता 18 गोठवाल मीणा बंजारी माता 19 बारवाल मीणा बंजारी माता 20 बडजावत मीणा बंजारी माता 21 मांदड मीणा बीजासणी माता 22 डाडरवाल मीणा बीजासणी माता 23 चांदा मीणा बाण अशावरी माता 24 नांढला बडगोती 1 अम्बा माता 2 आशावरी माता 25 सुलाणया सुलाने भगवासन माता 26 सौगण शेवगण मीणा बांकी माता 27 बयाडवाल मीणा बांकी माता 28 दुलोत मीणा बांकी माता 28 डूमाला मीणा बांकी माता 29 मांड्या मीणा बांकी माता 30 देबडवाल मीणा चांवड माता 31 नाई मीणा नारायणी माता 32 ककरोडा मीणा 1 चांमुडा माता 2 नारायणी माता 33 मेवाल मीणा 1 मैणसी माता 2 नारायणी माता 34 कोटवाल मीणा मोरा माता 35 चंदवाडा मीणा मोरा माता 36 धूरवाल मीणा लहकोड माता 37 कुवाल मीणा लहकोड माता 38 डेचरवाल मीणा चांमुडा माता 39 बमणावत मीणा बिलई माता 40 सिहरा मीणा दांत माता 41 सहेर मीणा गुमानो माता 42 टाटू मीणा बडासन लंकेश्वरी माता 43 राजरवाल मीणा चांवड माता 44 लालसोटया मीणा चांवड माता 45 लोटन मीणा चांवड माता 46 डांगर मीणा चांवड माता 47 खोडा मीणा सेवड माता 48 देवाना मीणा चांवड मीणा 49 कालोत मीणा बांकी माता 50 मुराडया मीणा खोरी माता

काळाच्या ओघात लुप्त पावलेला महाराष्ट्रातील मिना समाज , स्वाभिमानी मिना समाज सेवकांन मुळे परत जोमाने सर्वत्र प्रसिद्धीच्या झोकात आला . - विलास सिंग सुलाने यांचे प्रतिपादन महाराष्ट्रातील मिना समाज लुप्त का पावला यांचे दोन कारण 1) इतिहासात डोकावून पाहिले असता अशे लक्षात येईल कि महाराष्ट्रातील मीना समाजाने इंग्रजांच्या विरोधात लढतांना सन 1857 च्या क्रांती युद्धात भाग घेतले त्या मुळे इंग्रजांनी या समाजाला जेरिस आणण्यासाठी यांच्या वर जरायम पेशा का गुन्हेगारी कायदा लागु केला. या कायद्याच्या जाचक अटितुन वाचण्यासाठी साठी त्या वेळच्या मिना लोकांनी आपली मिना जात लुपवून परदेशी सांगितले . 2) शिव छत्रपती शिवाजी महाराज यांना आग्रा येथुन बादशहा औरंगजेबाच्या कैदेतुन सोडण्यात मीर्झा राजे जयसिंग च्या फौजेतील मिना सैनिकांनी मदत केली . या कारणांमुळे राजा जयसिंग च्या आणि बादशहा च्या दहशती मुळे औरंगाबाद शहरातील मीना सैनिक औरंगाबाद च्या आसपासच्या डोंगर डर्यात तसेच जालना बुलढाणा जळगाव अमरावती व वर्धा या जिल्ह्यात आपली मीना जात लपवून परदेशी नावाने जगु लागला . 3) मिर्झा राजे जयसिंग हे राजपूत होते ते बादशहा औरंगजेबाचे मंडलीक होते तसेच ते राजस्थान जयपुर येथील राजे होते . ते स्वराज्य वर स्वारी करण्यासाठी आले तेव्हा त्यांनी महाराष्ट्रातील मिना सैनिकांना आपल्या राजपूत सैनिकांत सामिल केले त्या मुळे महाराष्ट्रातील मिना लोकांना पण इतर लोक राजपूत समजायला लागले . अशा प्रकारे देश हिता साठी प्राणपणाने लढणारा महाराष्ट्रातील शुरविर इमादार मेहनती मिना समाज काळाच्या ओघात लुप्त पावला होता . महाराष्ट्रातील स्वाभिमानी मिना समाज सेवकांनी सोशल मिडीया च्या माध्यमातून मिना समाजाला परत प्रसिद्धीच्या झोकात परत आनले. मिना समाजाला महाराष्ट्रात obc या कटेगीरि आरक्षन आहे. आपल्याला आपल्या मिना जातीच्या नावाने सन्मानाने जगता यावे या साठी अनेक मिना समाज बांधव शाळेच्या रेकार्ड मध्ये दुरूस्ती करुण परदेशी , राजपूत अशे शब्द हटवून मिना (Mina ) लीहत आहे. अशी माहिती महाराष्ट्रातील मिना समाज आरक्षनाचे शिल्पकार आणि मिना समाज संघटना महाराष्ट्र चे संस्थापक अध्यक्ष विलास सिंग सुलाने यांनी सांगितले . त्यांनी पुढे सांगितले कि आपली पुढील लढाई महाराष्ट्रातील मिना समाजाल ST कटेगीरित घेण्यासाठी अशेल. त्यासाठी महाराष्ट्रातील मिना समाजाला संघटीत होने हि काळाची गरज आहे.

भारतीय किसान की हलत हर वर्ष बहुत खराब हो रही है.महाराष्ट्र मे हर वर्ष हजारो किसान आत्महत्या कर रहा है.